Wednesday, June 15, 2011

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो कैसा होता?

बहुत दिनों से, या यूँ कहूँ, जब से राजनीतिक होश संभाला है तब से यह सपना देखता आ रहा हूँ की मैं यदि प्रधानमंत्री होता, तो कैसा होता?

काश्मीर आतंकवाद का निबटारा & धारा 370 की समाप्ति, जन लोकपाल बिल को पास करवाना, अयोध्या- काशी- मथुरा को धार्मिक व नायायिक दृष्टि से हिन्दुओं को सौंपना, देश से आई.ए.एस के हाथों से सत्ता वापस विभागों के पास लाना और सारे कार्य प्रोफेशनल तरीके से कराना. 2 दलीय राजनीतिक संविधान लाना और प्रधानमंत्री का सीधे चुनाव कराना, आदि आदि. कितने काम करने हैं यारों. बस परमाणु ऊर्जा और बोईंग के सौदों का व्यापार करना ही उद्देश्य नहीं है मेरा.

प्रधानमंत्री माने की देश का सबसे ताकतवर व्यक्ति, माने की देश का सर्वोच्च शक्तिशाली पद (सर्वोच्च संविधानिक पद राष्ट्रपति का होता है, पर व्यावहारिक दृष्टि से प्रधानमंत्री ही सर्वोच्च पद होता है).. पर फिर कभी कभी ख्याल आता है की मात्र नाम का प्रधानमंत्री नहीं बनाना भाई, रबर स्टंप तो बिलकुल नहीं. वरना हाथ अट्ठन्नी भी नहीं आती और गालियाँ हजार सुननी पड़ती हैं. और अल्पमत सरकार तो बिलकुल भी नहीं, वरना सब्जी-भाजी जैसे सांसदों को कभी बस में बिठा के घुमाने ले जाओ, कभी सूटकेस थमाओ. और गठबंधन सरकार तो कभी भी नहीं, उस हालत में तो बेचारा प्रधानमंत्री उस पति जैसा होता है जिसकी 272 सासें उसके घर में आ कर बैठी होती हैं. 

मतलब की, मैं प्रधानमंत्री बनना भी चाहता हूँ, पर अपनी शर्तों पे. पूर्ण बहुमत के साथ, बहुमत भी तीन चौथाई. अब मैंने कुछ ज्यादा तो माँगा नहीं है! एक पदभार माँगा है, पूरे प्रभार और शक्ति के साथ. जो सारे सौदे, यानी के सारे निर्णय स्वयं ले. सारे कमीशन.. मतलब की, डिसीज़न उसके रहें. पर फिर एक खयाल आता है कि यदि प्रधानमंत्री को भी लोकपाल के दायरे में ले आये तो? छोड़ो यार, हम बेरोज़गार ही अच्छे ;)
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