Saturday, October 16, 2010

दहन बहुत हो चुका..

बहुत हो चुका दहन, सहन बहुत हो चुका;
रावण का प्रतीतात्मक निधन, बहुत हो चुका..
भारत में तो दीवाली ही परंपरा है,
अयोध्या पावन, काशी-मथुरा है..
रावण ने मुक्ति पाने था स्वांग रचाया,
भगवान के हाथों मोक्ष का वरदान पाया,
सीता जी को जिसने हाथ तक ना लगाया..
आज देखो नारी का सम्मान कहाँ है ?
हर दृष्टि में देह है, पर जान कहाँ है ?
हर ओर बस लूट-भ्रष्टाचार ही है,
हर किसी में वेदना-चीत्कार सी है..
हिन्दु हिन्दु ना रहा, भारत भारत ना रहा..
इस हाल में निर्वहन, बहुत हो चुका..
मात्रभूमि शत शत  नमन, पर अब बहुत हो चुका..
: प्रियंक


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