Saturday, May 23, 2009

श्यामा प्रसाद मुख़र्जी बलिदान दिवस

२३ जून 1953 को कारगर में मृत्यु पा कर शहीद हुए ये भारत के वीर सपूत आज अपनी मृत्यु के 56 साल बाद भी अपनी मौत के कारण को सार्वजानिक होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

स्वर्गीय श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का जीवन संघर्ष पूर्ण रहा. उनका संघर्ष व्यक्तिगत परेशानियों से नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय शत्रुओं से युद्ध उनके जीवन का उद्देश्य बन गया था.

श्यामा प्रसाद मुख़र्जी का जन्म 6 जुलाई १९०१ को कलकत्ता में हुआ. कलकत्ता उस समय भारत की राजधानी हुआ करता था. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के पिता आशुतोष मुख़र्जी कलकत्ता के जाने माने वकील थे और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे.
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी आरम्भ से ही मेधावी थे, उन्होंने प्रथम स्थान के साथ अंग्रेजी में ग्रेजुएशन और ऍम.ऐ उत्तीर्ण किया, तदोपरांत वकालत की परीक्षा भी
उत्तीर्ण करी. अपने पिताजी की मृत्यु के बाद आपने २३ वर्ष की आयु से वकालत करनी आरम्भ करी. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ३३ वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे कम आयु के कुलपति नियुक्त हुए.

आपने बंगाल के राजनितिक गलियारे को राष्ट्रीयता का जामा पहनाया. जब बंगाल को प्रथक देश बनाने का कुप्रयास हुआ तो श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की वजह से ही ऐसा संभव न हुआ. श्यामा प्रसाद मुख़र्जी देश के बंटवारे के कट्टर विरोधी थे, पर जब उन्होंने 1946 का दंगा देखा तो उस खून खराबे को और बर्बरता को उन्होंने इतिहास की सबसे बर्बर वारदात बताया और कहाकि अगर मुसलमान पाकिस्तान में रहना चाहते हैं तो अपना सामान बाँध के जहाँ जाना चाहें वहां चले जाएं".
जवाहरलाल नेहरु ने मुख़र्जी जी को अपनी सरकार में उद्योग मंत्री बनाया पर आपने १९४९ के दिल्ली समझौते के विरोध में अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. नेहरु ने पाकिस्तान के प्रधान मंत्री लियाकत अली खान के साथ मिल के दोनों देशों के अल्पसंख्यकों को विशेष दर्जा देने का समझौता किया था, जिसको मुख़र्जी जी ने मुस्लिम वोट बटोरने का और धर्म के आधार पे राजनीति करने का कुत्सित प्रयास बताते हुए इसके पुरजोर विरोध किया था.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के परम पूज्य गुरूजी माधवराव सदाशिव गोलवलकर जी से सलाह कर के श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने 21 अक्टूबर १९५१ में राष्ट्रीय जन संघ की स्थापना की और इसके प्रथम अध्यक्ष बने.
जन संघ का उद्देश्य
१) कांग्रेस पार्टी की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति रोकना
२) हिन्दू - मुस्लिम सभी के लिए सामान संविधान को लागू करना
३) गो हत्या बंद करवाना
४) जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य के अधिकार को समाप्त करना, शामिल था.

काश्मीर मुद्दे पर श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के अनुसार "एक देश में दो विधान , दो प्रधान & दो निशान नहीं चलेंगे".
उस वक्त भारत का राष्ट्रपति भी कश्मीर के प्रधानमंत्री की अनुमति के बिना वहां प्रवेश नहीं कर सकता था. कश्मीर जाने के लिए पहचानपत्र मिलता था. जम्मू काश्मीर का अलग प्रधानमंत्री, अलग ध्वज & अलग संविधान था.
श्यामा प्रसाद मुखेर्जी इसके विरोध में बिना पहचान पत्र के कश्मीर गए & उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. निम्न कोटे की कारगर में रखने से उनका स्वस्थ बिगड़ गया. उनको पेनीसिलीन के इंजेक्शन लगाये जाने लगे, श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने डाक्टरों से कहा की उनको पेनीसिलीन से एलर्जी है तब भी उनको ये इंजेक्शन लगाये जाते रहे और अंततः उनका देहांत ( पढें - कत्ल ) 23 जून 1953 को अजीब परिस्थितियों में कारावास में हो गया.
श्यामा प्रसाद मुख़र्जी सदा ही राष्ट्र की एकता और हिन्दू धर्म के गौरव की लडाई लड़ते रहे. उनकी मृत्यु के ५६ वर्ष बाद भी उनके स्वप्न अधूरे हैं. देश में काफी कुछ बदल गया है, जन संघ - भारतीय जनता पार्टी बन गया है, जम्मू कश्मीर के साथ साथ नक्सली समस्या, उत्तर पूर्व की समस्या, धर्मांतरण की समस्या, जाती - क्षेत्र की समस्या आदि सर उठा चुकी हैं. जो पुरानी राष्ट्रीय समस्याएं थीं वो भी यथावत हैं.

आज, श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के बलिदान दिवस पे हम सचेतन भारतीय ये प्रतिज्ञा लें कि श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के स्वप्न को अपने जीवन का उद्देश्य बनायें. उनके बलिदान को व्यर्थ ना जाने दें,

धन्य है वो जीवन जो माँ भारती के काम आये
वन्दे मातरम

प्रियंक ठाकुर

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