Monday, March 21, 2011

जीवन सार

हम सभी ने कभी ना कभी ये अवश्य सोचा है कि "मैं कौन हूँ?", "ये जीवन क्यों है?", "मृत्यु क्यों आती है?", "कष्ट क्यों होते हैं?", इत्यादि. आज मैंने सोचा चलो इन्ही जटिल सवालों को सोचने के साथ साथ लिख लिया जाए.
मैं स्वयं को विचारक या चिन्तक नहीं मानता, पर हाँ जीवित जरूर मानता हूँ. इसलिए, जो हूँ उसके बारे में सोचने की तो बनती है, है कि नहीं?
सबसे पहले आधार भूत सवाल, ये जीवन क्यों है? कभी कभी लगता है कि हम भगवान के लिए "टॉम & जेरी" से कम नहीं हैं. बस फर्क इतना है कि हमारे कार्टून रुपी जीवन के रचनाकार और दर्शक दोनों भगवान ही हैं. नहीं, ये व्यंगात्मक लेख नहीं है. अनेक दार्शनिकों ने लिखा है कि ये दुनिया आत्मा के लिए पाठशाला या परीक्षा होती है. आत्मा को हर सुख- दुःख से साक्षात्कार करवा के उसका स्तर बढाया जाता है ताकि वो अगले स्तर के लिए तैयार हो सके. फिर लगता है कि यदि आत्मा भी भगवान ने ही बनाई है और विभिन्न स्तर भी भगवान के ही रचित हैं तो फिर भगवान आत्मा को सीधे उच्च स्तर का ही क्यों नहीं रचते? फिर दूसरा विचार ये आता है कि जैसे हम अपने काम के लिए कंप्यूटर या मशीन बनाते हैं, वैसे ही भगवान ने हमको उनके काम करवाने के लिए रचा है. पर जब ये पूरी सृष्टि ही भगवान ने रची है तो ऐसा कौन सा काम है जो भगवान स्वयं ना कर के हमसे करवाना चाहते हैं? अंत में बस यही एक उत्तर समझ आता है कि हम निश्चित ही देवलोक के मनोरंजन हेतु निर्मित "टॉम & जेरी" ही हैं.
अगला प्रश्न "मैं कौन हूँ?". इस प्रश्न में पुछा गया "मैं" एक माया है, इस "मैं" के चक्कर में हम सारी ज़िन्दगी "मैं" से ही दूर रहते हैं. कहा गया है कि हम सब उस एक परमात्मा के अंश मात्र हैं. फिर भी हम हर उलझन, हर अड़चन, हर बात को अपना सर्वस्व मान कर स्वयं से ज़िन्दगी भर दूर रहते हैं. मेरे अनुसार: "मैं" और कुछ नहीं, वर्तमान क्षण मात्र है. आने वाला क्षण अभी आया नहीं और जो बीत चुका है, वो लौट के आना नहीं है, हमारी पहचान, हमारा जीवन, हमारा सब कुछ, बस ये एक क्षण है, ये एक पल है. "मैं" भी बस ये क्षण ही है. हम पूरी दुनिया को, हर दूसरे काम को उम्र भर महत्त्व देते हैं, पर स्वयं के साथ कभी वार्ता नहीं करते. कभी समय निकालो, खुद से बात करो, खुद से दोस्ती करो; आनंद आ जाएगा. अपने आप से अच्छा दोस्त और मार्गदर्शक दूसरा नहीं है. मुझे आज तक ऐसा सवाल नहीं मिला जिसका जवाब मुझे मेरे मन ने नहीं दिया. इस "मैं" को समय दो..
फिर आता है "कष्ट क्यों होते हैं?". कष्ट होना भी जीवन का भाग है. जब हमको सुख मिलता है तो हम कभी सवाल नहीं करते कि ये ख़ुशी क्यों मिली? है ना? फिर दुःख आते ही हम भगवान को क्यों कोसने लगते हैं? ना हम ये जानते हैं कि ये दुनिया कैसे बनी, क्यों बनी, किसने बनाई; ना ये जानते हैं कि भाग्य क्या होता है, आत्मा कहाँ से आती है, कहाँ जाती है. हम तो भगवान को तक नहीं मानते, फिर कष्ट होने पर उनको कोसते क्यों हैं? यदि हम इन सारी बातों पे भरोसा करें, भगवान पे भरोसा करें, तो हमको अपने आप शक्ति मिलेगी कि हम इस कष्ट से बहार आ सकें. पर हमारे लिए सबसे कठिन काम भी भरोसा करना ही है, वो भी भगवान पर!
अंतिम प्रश्न "मृत्यु क्यों आती है?" इस प्रश्न का सबसे सही उत्तर पहले के हर जवाब में है. फिर भी, आसान शब्दों में: इन्सान का सबसे बड़ा ढोंग यही है कि यह जानते हुए कि हर किसी को मरना है, वो सारी उम्र यही मान कर हर काम करता है कि वो अमर है. यदि हम मृत्यु को भी जन्म के जैसे स्वीकार कर लें, तो मृत्यु का भय ही समाप्त हो जाए. और मेरी बात मान लीजिये, ये दुनिया सुधर जायेगी. जब हमको यह एहसास रहेगा कि हमको एक दिन मरना है और खाली हाथ भगवान के दरबार में जाना है, तो अपने आप सारे अपराध, भ्रष्टाचार, दुःख, बीमारियाँ, सब समाप्त हो जायेंगी.
पूरे पोथे का सार यह है कि "वर्तमान में जीयो & भगवान पर भरोसा रखो".
राम आपके जीवन में सदविचार, स्वास्थ और सम्पन्नता बनाये रखें, आपका जीवन स्वतः सुखमय बीतेगा. नमस्कार : प्रियंक ठाकुर

Friday, March 11, 2011

Japan.. May God be with You

http://meri-rachna.blogspot.com/2011/03/blog-post.html