क्या ये समस्या हमारी नहीं है?
क्या मराठी हमारे भाई नहीं ? क्या महाराष्ट्र हमारे भारत की आन नहीं?
क्या हमे तब तक इंतज़ार करना होगा जब हमे जम्मू कश्मीर की तरह महाराष्ट्र में संपत्ति खरीदने - विवाह करने सरकार से अनुमति लेनी होगी? क्या हम सोविएत संघ की भांति राष्ट्र के टुकड़े होने देंगे? क्या अंग्रेजों की सिखाई तरकीब " divide & rule " को भारतीय एकता और संस्कृति पर हावी होने देंगे?
इन सारे सवालों के जवाब क्या हम ढूंढ पाएंगे?
अगर आप में से किसी के भी पास कोई भी सुझाव है और उस से १% भी आशा बंधती है, तो में आपको भरोसा दिलाता हूँ की उस पर अमल करने वाला में प्रथम भारतीय रहूँगा.
कृपया इस समस्या पर अपने सुझाव दें. क्योंकि आपसे पहले ठाकरे जैसे क्षेत्रवादी नेता व्यापारिओं के दिमाग दौड़ने लगे हैं जो इस विषय पर हर क्षेत्र में अपनी रोटी सेंकने आतुर हैं. उनके हावी होने से पहले हमारी एकता उन पर हावी हो जाये..
हमे पता है की भारत की अखंडता को मुग़ल और अंग्रेज भी नहीं तोड़ पाए, पर जब हमारे अपने स्वार्थी हो गए, तब भारत के टुकड़े हो गए. उस कडवे अतीत को ध्यान में रखें,
हम तब कुछ नहीं कर पाए थे
अब करें
वन्दे मातरम
प्रियंक ठाकुर
Friday, February 12, 2010
क्या मराठी मानुस के विषय पर हमारी और आपकी चुप्पी सही है ?
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